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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

शुक्रवार, 21 मई 2021

काश..चांदी की पायल दे पाते....

चांदी की पायल भी दे पाते 
हाय ये हसरत ही रही
रोटी से उबर न पाए हम 
ऐसी ये किस्मत ही रही

काश पसीने से भीगे
 तेरे लिलार के स्वेद बिंदु
 तेरी ग्रीवा का हार बने
मोती में ढल श्रृंगार बनें।

हसरत ही रही सिंदूर तेरा
स्वर्ण लीक से दप दप दमके
तेरे पग में पायल छनके
तेरे कंगना का गीत बजे

रोटी और छत के बोझ तले
ये स्वप्न मेरे कितना सिसके।
इस ज्वाला के दावानल में 
हृदय मेरा धू धू धधके।

पर हाय प्रिये मेरी प्रियतम 
मनसे विचार से सुंदरतम
तुम में है धैर्य समंदर का 
तुम उच्च सर्वथा नीलगगन

तेरे सामर्थ्य का पासंग नही 
मैं पर्वत में भी पाता हूँ
तेरे समान गहराई भी
सागर में ढूँढ़  न पाता हूँ

मुझको ना नैराश्य धरे 
तुम कोमल सुर बन जाती हो
अपने सपनो को भूल भाल
मेरा सामर्थ्य  बढ़ाती हो

तुम प्राणाधिक प्रिय हो मेरी सखी
 तुम मेरा बल हो मेरी सखी
इस जग के ही हैं सब सुख दुख
अपने ही तो हैं सब सुख दुख 

इनमें हम साथ निभाएंगे
हर बाधा से पार भी पाएंगे
उज्ज्वल भविष्य की स्वर्णदीप्ति में 
कल साथ साथ मुस्काएंगे।

सोमवार, 17 मई 2021

अगर तुम हो वही

 अगर तुम हो वही जो 

लोग कहते हैं कि तुम हो

अगर तुम हो वही ...

अगर तुम हो वही ...!


अगर तुम हो वही 

तो धरा को इसके पापों से छुड़ा कर 

थाम लेते क्यों नही ?

अगर तुम हो वही...


अगर तुम हो वही 

तो लोक क्रंदन को मिटा देते क्यों नही

अगर तुम हो वही ...!


 अगर तुम हो वही

तो शोक में डूबा सारा जहां क्यों है?

बिलखती आत्मा और 

रो रही एक मां क्यों है ?

क्यों जीव हर संतप्त है और

 भय से कांपती हर सांस क्यों है ??

नींद क्यों आंखों से रूठी और

विचलित मन की ये दशा क्यों है ?

अगर तुम हो वही ...!


अगर तुम हो वही 

 तो सांस हर बोझिल है

 कातर ,आर्द्र हो उठा हर स्वर क्यों है ?

 अगर तुम हो समंदर तो 

 हर नदी की ये दशा क्यों है ?

 अगर तुम हो वही ...!


अगर तुम हो वही 

 अगर तुम हो गगन तो 

 पवन की ये दशा क्यों है?

 अगर तुम हो किनारा तो

 भंवर में डूबती हर नाव क्यों है?

 अगर तुम हो वही ...

 अगर तुम हो वही ...

 अगर तुम हो वही ...!!

शतरंज की बिसात

उलझनों की बिसात पर
 चलता हुआ 
 एक मोहरा है जीवन
आशा निराशा के 
सफेद काले खानों में 
चलता दौड़ता फांदता 
कभी ऊंट कभी घोड़ा तो 
कभी प्यादा है जीवन
कभी दूजे से 
कभी खुद से लड़ता 
कभी जीतता जंग तो 
कभी हारता है जीवन 
बादशाहत किसी की 
बनाये रखने को
खुद के लिए मौत को
स्वीकारता है जीवन
उलझनों की बिसात पर खुद से 
हर पल हारता है जीवन