वर्जनाओं में बँधी जिन्दगी
जब भी तोड़ती है कोई श्रृँखला
उमड़ती वेग से ,
बहा ले जाती है साथ ,
सभी वर्जनाएँ,
साथ ही सभी मर्यादाएँ
जैसे तटबन्ध तोड़ती नदी
टूटते बॉंध--
वेग नहीं देखता सीमाएँ
बहा ले जाता है सभी कुछ
अच्छा- बुरा,जीव- निर्जीव--
वेग को बहाव दो
सीमित सन्तुलित बहाव
बाँधो मत
समझो तो ,दिशा उसकी,
मोड़ देना है -- दो--
मगर ,धीरे से हौले -हौले
वर्जनाएँ ही तो हैं ,
कांस्य कलश,
कभी चाँदी ,कभी सोने के कलश,---
-----जंजीरें
और अस्तित्व औरत का..
घड़ा... मिट्टी सा..
चुपचाप ,सॉंस थामे
बैठे रहे(दुबके रहे) छॉंव में
तो सही
टकराए,टूट जाए या
राह बदल ले
सम्भव नहीं होता हरदम
तो विनाश तो तय है...
वेग ठहर सकता है ,
पल ...दो पल'
रुक नहीं सकता,
बहता है..... बहने दो l
अन्यथा ,विनाश को आमन्त्रित कर
विनाश पर क्रन्दन क्यों..?
जब भी तोड़ती है कोई श्रृँखला
उमड़ती वेग से ,
बहा ले जाती है साथ ,
सभी वर्जनाएँ,
साथ ही सभी मर्यादाएँ
जैसे तटबन्ध तोड़ती नदी
टूटते बॉंध--
वेग नहीं देखता सीमाएँ
बहा ले जाता है सभी कुछ
अच्छा- बुरा,जीव- निर्जीव--
वेग को बहाव दो
सीमित सन्तुलित बहाव
बाँधो मत
समझो तो ,दिशा उसकी,
मोड़ देना है -- दो--
मगर ,धीरे से हौले -हौले
वर्जनाएँ ही तो हैं ,
कांस्य कलश,
कभी चाँदी ,कभी सोने के कलश,---
-----जंजीरें
और अस्तित्व औरत का..
घड़ा... मिट्टी सा..
चुपचाप ,सॉंस थामे
बैठे रहे(दुबके रहे) छॉंव में
तो सही
टकराए,टूट जाए या
राह बदल ले
सम्भव नहीं होता हरदम
तो विनाश तो तय है...
वेग ठहर सकता है ,
पल ...दो पल'
रुक नहीं सकता,
बहता है..... बहने दो l
अन्यथा ,विनाश को आमन्त्रित कर
विनाश पर क्रन्दन क्यों..?

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