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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

धूप-इक ख़याल सी

धूप इक ख़याल सी
किसी नाज़ुक एहसास सी
कि आँख खोलने से भी
डर जाती हो
नींद वो बेख़याल सी
नाज़ुक एक उम्र
खो गयी जो
आँख खुलने से पहले
ज्यूँ बदलियों ने ढक लिया हो
धूप का कतरा कोई
बेहिस ज़िन्दगी की दौड़ में
बस एक कतरा वही उम्र का
ज़िंदा रह गया

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