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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

रविवार, 27 दिसंबर 2015

उम्मीद

एक टूटे रिश्ते का छोर पकड़ने की कोशिश
और अँधेरे में हाथ पाँव मारते लोग
एक अँधेरी सुरंग से गुजरते जाने का अहसास
जिसका कोई छोर है भी की नहीं
अनंत है ये अँधेरा
महसूस होता है कभी
पर सुबह तो होगी कभी
रौशनी हंसेगी सुरंग के उस छोर पर
जहां कोई तो होगा
हाथ थामे हुए एक नए सपने का
नयी उम्मीदों के साथ

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