दवा मरीज़ की होती है हरेक मर्ज की नही
हर किसी को पकड़ता हो ये वो दर्द नही
हम दर्द के साथी हैं अक्सर वो भूल जाते हैं
हर कराहट को छुपा लें हम वो बेदर्द नही
सिसकियां आहें कराहें और वो बिलखते हुए रिश्ते
उनको बातों में फुसला सकें हम वो सैयाद नही
अक्सर उनके गमों से पलक अपनी भी भीग आती हैं
बोझ उनके गम का उठा लें हमको ये भी अधिकार नही
हर ओर फैले हैं किस कदर बेबसी के समंदर
पार कर जाएं ये भंवर हम वो तैराक नही
फिक्रे रोज़ी में असली अश्कों पे
चढ़ा देते है झूठी तसल्ली का लबादा
सरे रात फिर चैन से सो जाएं हम
उनकी तरह बेगैरत बुत ओ मीनार नही