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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

ताबेदार

दवा मरीज़ की होती है हरेक मर्ज की नही
हर किसी को पकड़ता हो ये वो दर्द नही

हम दर्द के साथी हैं अक्सर वो भूल जाते हैं
हर कराहट को छुपा लें हम वो बेदर्द नही

सिसकियां आहें कराहें और वो बिलखते हुए  रिश्ते
उनको बातों में फुसला सकें हम वो सैयाद नही

अक्सर उनके गमों से पलक अपनी भी भीग आती हैं
बोझ उनके गम का उठा लें हमको ये भी अधिकार नही

हर ओर  फैले हैं किस कदर बेबसी के समंदर 
पार कर जाएं ये भंवर हम वो तैराक नही

फिक्रे रोज़ी में असली अश्कों पे 
चढ़ा देते है झूठी तसल्ली का लबादा

सरे रात फिर चैन से सो जाएं हम
उनकी तरह बेगैरत बुत ओ मीनार नही

मन की बात

अश्क लिखते हैं रवां कर के लहू से अपने
चुप रहे तो ज़र्रा ज़र्रा हो के बिखर जाएंगे

हर तरफ शोर के बवंडर लहराते हुए फिरते हैं 
ये समंदर एक सन्नाटे का ले कर के किधर जाएंगे।