चुपचाप,निःशब्द
दबे पांव निकल जाता है भला ?
कोई ..!
जिंदगी से जीवन ही खींच जाता है
जैसे भटकती है कोई रूह
ऐसे सरे मंजिल भटका जाता है
ऐसे भी हाथ छोड़ता है भला
कोई..!!
वो उजाला तेरी आँखों का था शायद
जो सदा आसपास फैला था
वो गर्मी वो महक
तेरी मौजूदगी भर से थे शायद
बड़ी नमी बड़ी बिछलन सी
है अब अंधेरी गलियों में
तेरे हाथों की तलाश मुझको अब
तेरी याद दिलाती है बहुत