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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

शुक्रवार, 20 मई 2016


विशाल वृक्ष और उसकी छाया में
पलते कुछ सपने
आँखें मीचे कुनकुनी सी धुप में
सपने देखने का सुख ---
समझ सकता है सिर्फ वोही
जिसने खो दिया हो  असमय ही
 किसी अपने को
  उठ गया हो सर से जिसके
साया पिता के स्नेह का --असमय ही .वो कैसे देखे सपने जब -
सवाल हो सामने   ज़िम्मेदारी का
खो गए थे सपने उसके -उसी दिन
एक विशाल वृक्ष कि छाँव बिना