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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013

समीक्षा

 कल का एक गलत निर्णय झोंक देता है ज़िंदगी को हमेशा सुलगाने के लिए । जलती नही ज़िंदगी, सूखे पत्तों की तरह, एक -ब् -एक; सुलगती है धीरे -धीरे, भीगी लकड़ी की  तरह । ,धुंवाती ज़िंदगी 'कडुवा ती आँखें  और राख़ बनते जाते रिश्तों का दम घोंटू अंधेरा घे र लेता है मन को और मरता जाता है मन इन गुमनाम अँधेरों में।
                                                                                                                                  चेतना 

रविवार, 22 सितंबर 2013

एकाकी

फिसलती जाती है ज़िंदगी यूं हाथों से ,
मानो समय नहीं;रेत हो मेरे हाथों में ,
कण-कण ,पल-पल ;अलग-अलग ;
--------------------छितराया सा !
ढूंढती हूँ खुद को ,पाऊँ कहाँ ,मैं ;-जाऊँ कहाँ ,
खो रही हूँ मैं ,कतरा -कतरा ----;
रीतते पल ,छीजती जाती है जिंदगी 

यादें

तेरी नज़रों को उड़तीजुल्फों  पे ठहरते देखा है
तेरी आँखों में मोहब्बत को दफन देखा है
समय के बहते दरिया में कल की यादों को
लहरों की तरह उठ के गिरते गिर के उठते  देखा है