Featured post

यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

मंगलवार, 1 मार्च 2022

वार

अब डरो के दोज़ख जाहिर है अब डरो के सांसें हारी हैं
जब कहीं भी कब्र की राख उड़े सोचूं  अब किसकी बारी है

इंसाँ अब इंसाँ बचा कहाँ इंसाँ ने बाजी हारी है
हैवानों की इस बस्ती में लाशों की गिनती जारी है।