शायद कुछ को है बुरी लग सकती
पर कहे बिना ये बात भी तो रह नही सकती
कैसा लगता है जब भगवान को राम के पद से हटा कर आम बना दिया जाए
कर्तव्य हमारे का निर्धारण किसी और द्वारा किया जाए
जब तलक न मिले शासन का आश्वासन
हम तोड़ भी कैसे सकते है अनुशासन
हमें है विश्वास विधा पर कर सकते हैं हम भी चमत्कार
पर दिया भी तो जाए परीक्षण का अधिकार
ये कैसे हैं कहे जा रहे भगवान हम
जब विनाश काल मे आ भी ना सकें काम हम
कल यही उठाएंगे हम पे उंगलियाँ
और लगाएंगे सवाल हमारे अस्तित्व हमारी विधा पर
बताएंगे हमे निष्प्रयोज्य और फज़ूल
क्या ये सवाल आपको नही करते
उद्वेलित
क्या है कोई जवाब ।
क्या है कर्तव्य हमारा और क्या अधिकार?