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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

प्रश्नचिन्ह


शायद कुछ को है बुरी लग सकती
पर कहे बिना ये बात भी तो रह नही सकती
कैसा लगता है जब भगवान को राम के पद से हटा कर आम बना दिया जाए
कर्तव्य हमारे का निर्धारण किसी और द्वारा किया जाए
जब तलक न मिले शासन का आश्वासन
हम तोड़ भी कैसे सकते है अनुशासन
हमें है विश्वास विधा पर कर सकते हैं हम भी चमत्कार
पर दिया भी तो जाए परीक्षण का अधिकार
ये कैसे हैं कहे जा रहे भगवान हम
जब विनाश काल मे आ भी ना सकें काम हम
कल यही उठाएंगे हम पे उंगलियाँ
और लगाएंगे सवाल हमारे अस्तित्व हमारी विधा पर
बताएंगे हमे निष्प्रयोज्य और फज़ूल
क्या ये सवाल आपको नही करते
उद्वेलित
क्या है कोई जवाब ।
क्या है कर्तव्य हमारा और क्या अधिकार?