कल का एक गलत निर्णय झोंक देता है ज़िंदगी को हमेशा सुलगाने के लिए । जलती नही ज़िंदगी, सूखे पत्तों की तरह, एक -ब् -एक; सुलगती है धीरे -धीरे, भीगी लकड़ी की तरह । ,धुंवाती ज़िंदगी 'कडुवा ती आँखें और राख़ बनते जाते रिश्तों का दम घोंटू अंधेरा घे र लेता है मन को और मरता जाता है मन इन गुमनाम अँधेरों में।
चेतना
चेतना