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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013

समीक्षा

 कल का एक गलत निर्णय झोंक देता है ज़िंदगी को हमेशा सुलगाने के लिए । जलती नही ज़िंदगी, सूखे पत्तों की तरह, एक -ब् -एक; सुलगती है धीरे -धीरे, भीगी लकड़ी की  तरह । ,धुंवाती ज़िंदगी 'कडुवा ती आँखें  और राख़ बनते जाते रिश्तों का दम घोंटू अंधेरा घे र लेता है मन को और मरता जाता है मन इन गुमनाम अँधेरों में।
                                                                                                                                  चेतना